मेरी भूख बिक रही है लाखो में / Heart Touching Poetry
गरीबी एक ऐसा शब्द जिसे जितना याद किया जाये उतना ही लाचारी ,बेबशी, भूख का एहसास कराता है. जिस शब्द को कोई भी इंसान अपने जीवन में अपनाना नहीं चाहता लेकिन बावजूद इसके ये शब्द इंसान का पीछा नहीं छोड़ता.
जी हां दोस्तों, आज का हमारा लेख इस शब्द के इर्द गिर्द ही घूमता है. आज ज्ञानी मास्टर गरीबी पर एक बेहद संजीदा कविता लेकर आये है. जिसे लेखकः आशीष जी द्वारा लिखा गया है.
तो देर न करते हुए चलिए पड़ते है ये कविता जिसका नाम है :
मेरी भूख बिक रही है लाखो में
ये कविता एक पेंटिंग में दफ़न प्यारे बच्चों के जज्बातों के आधार पर लिखी गयी है.आखिर ये बच्चे इस पेंटिंग के खरीदार को क्या कहना चाहते है.
मेरी भूख बिक रही है ,, लाखो में ।
चन्द सांसे तो ख़रीद दीजिये जनाब
मेरे आंशू बिक रहे है,,लाखो में
चन्द मुस्कुराहटें तो खरीद दीजिये ,,जनाब
मेरा रिश्ता बिक रहा है ,,लाखो में
लेकिन अनाथ भी तो मत कहिये न ,,जनाब
मेरी किस्मत बिक रहीं है ,,लाखो में
लेकिन मेरी बदकिस्मती तो मिटा दीजिये ,,जनाब
आप चाहे तो मेरी हड़िया भी बेच सकते है,,जनाब
लेकिन शरीर पर मॉस तो ख़रीद दीजिये ,,जनाब
मेरी लचारी,गरीबी,बेबसी,कमजोरी ,, आपकी लाखो की पेंटिंग बन जाती है जनाब
लेकिन मेरी चंद रुपयों की मोहताज ,, जिंदगी,, नहीं खरीद पाती जनाब ।।
जिंदगी नहीं खरीद पाती जनाब,,,,जिंदगी,, नहीं ?
aapki ye lines pad kar rona aa gya aashish ji
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