वो मेरे गाँव की मिट्टी - दिल छू लेने वाली एक छोटी सी कहानी / Heart Touching Story
आसमा के निले आकाश को गौर से देख रहा था । कुछ परिंदे उड़ रहे थे। मगर उचाईयो पर तो गिद्ध ही थे ।
च चाहट भी थी भीनी भीनी एक बरगद के पेड़ के आस पास । किसी डाल पर कही तो गोरया (चिड़िया ) भी छिपी थी । पर थी कहा दिख नहीं रही थी
सायेद वो मुझे देख रही थी ,कुछ तो रिश्ता था उसका भी मुझसे
जैसे ही आगे चलने की कोशिश करता च चाहट की आवाज मानो रुकने को कह रही हो । खेर घर तो जाना ही था और कदम तो चलाने ही थे । खेर चलने लगा
च चाहट भी थी भीनी भीनी एक बरगद के पेड़ के आस पास । किसी डाल पर कही तो गोरया (चिड़िया ) भी छिपी थी । पर थी कहा दिख नहीं रही थी
सायेद वो मुझे देख रही थी ,कुछ तो रिश्ता था उसका भी मुझसे
जैसे ही आगे चलने की कोशिश करता च चाहट की आवाज मानो रुकने को कह रही हो । खेर घर तो जाना ही था और कदम तो चलाने ही थे । खेर चलने लगा
तभी मेरी नजर उस पेड़ पर गयी जिसके नीचे हुका रख मेरे गाव के बढो की जमात लगती थी । सायद आज गुम थे कही । या में ही काफी सालो बाद अपने गाव आया था ।
कुछ विकास दिख रहा था मेरे गाँव में मुझे । आज मेरे गाँव में रास्ते में मिटी में खेलते गाव के बचे नहीं दिखे । पर मोबाइल में आँखे गड़ाये गाव के युवाओं की टोलियां तो खूब दिखी ।
लेकिन फिर भी में तो अपने गाँव की मिटी में लिपटे खेलते बचो की तलाश में ही था । लेकिन अफसोस कुछ दूरी पर बचो की टोली भी दिखी ,जिनके कपड़े चमक रहे थे और हाथ में मोबाइल था ।
लेकिन फिर भी में तो अपने गाँव की मिटी में लिपटे खेलते बचो की तलाश में ही था । लेकिन अफसोस कुछ दूरी पर बचो की टोली भी दिखी ,जिनके कपड़े चमक रहे थे और हाथ में मोबाइल था ।
सायेद तकनीक का जमाना मेरे कदमो से भी तेज मेरे गाव में दौड़ा था । काफी बदला बदला सा लग रहां था मेरा गाव मुझे
पर मैं कहा मानने वाला था । मुझे तो मेरे गाँव की मिटी में मेले कुचैले बच्चे देखने ही थे । पर मैं क्यों इन बचो को देखना चाहता था ।सायेद इसलिए की मेरी बचपन की यादें ताजा हो जाये जब में इस मिटी की खुसबू को संजोये मेला कुचैला हुआ करता था ।
खेर कदम बढ़ते गए । आँखे उन बचो को ही ढूंढती रही । जैसे ही घर जाने वाली सड़क के तरफ दाए मूढा । वही कुछ दूरी पर कुछ बड़ी उम्र के लोग खाट बिछा कर बेटे थे ।
सायेद वही जगह थी जहाँ में गिरा था । लेकिन जल्दी ही उठ गया । में अंजाने में नहीं घिरा था । गिरना था मुझे ।मेरे गाँव की मिटी में मेला होने का जो संकल्प लिया था ।
सायेद वही जगह थी जहाँ में गिरा था । लेकिन जल्दी ही उठ गया । में अंजाने में नहीं घिरा था । गिरना था मुझे ।मेरे गाँव की मिटी में मेला होने का जो संकल्प लिया था ।
तकनीक मेरे पास भी जेब में थी। पर में वोही बच्चा फिर से बन न चाहता था। फिर से वही बचपन को जीना चाहता था जो भागते भागते सो बार गिरता था और अपने गाँव की मिटी में मेला होकर घर जाया करता था।
आज 30 साल का होने के बाद फिर से उस पल को जी रहा था दोस्तों । और फिर से मेरे गाँव की मिटी में मेंला कुचैला होकर घर जा रहा था दोस्तों ।।।
और फिर से मेला कुचैला होकर घर जा रहा था दोस्तों ।।
और फिर से मेला कुचैला होकर घर जा रहा था दोस्तों ।।
Written By - आशीष
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Nice Story
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