प्राचीन नगर मोहनजोदड़ो का रहस्यमयी व् रोचक इतिहास
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मोहनजोदड़ो एक ऐसा नगर जो अपने में सदियों पुराना इतिहास समेटे हुए हैं. सिंधु घाटी सभ्यता का प्रमुख नगर मोहनजोदड़ो जिसकी खोज राम लद्दाख बनर्जी ने सन 1922 में की थी. इस शहर की खोज के पीछे भी एक दिलचस्प कहानी है
सन1856 में एक अंग्रेज इंजीनियर रेल रोड बनाने के लिए जमीन की खुदाई कर रहे थे. इंजीनियर कुछ कठोर पत्थरों की तलाश कर रहे थे जिनसे यह रेल रोड के लिए गिट्टी बना सकें और रेल रोड की नींव को व्यवस्थित कर सके.खुदाई के दौरान कुछ पुरानी मजबूत ईटें मिली जो बिल्कुल आज की ईंटों की तरह बनी हुई थी. जब अंग्रेज इंजीनियर ने पास के गांव के लोगों से इन ईंटों के बारे में जानना चाहा तो इन्हें कुछ दिलचस्प जानकारी हासिल हुई. इस दिलचस्प जानकारी से इंजीनियर समझ चुके थे यह जगह प्राचीन इतिहास को समेटे हुए हैं.
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सन 1922 में पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के सदस्य राम लद्दाख बनर्जी के द्वारा अधिकारिक रूप से इस शहर को खोजने के लिए खुदाई शुरू की गयी. खुदाई के प्रथम चरण में इन्हें बुद्ध स्तूप दिखाई दिया. जिसके बाद इन्हे विश्वास हो गया कि इस जमीन के नीचे गहरा इतिहास छिपा हुआ है. इसके बाद सन 1924 में काशी नाथ नारायण और 1925 में सर जॉन मार्शल ने खुदाई के कार्य को आगे बढ़ाया. जैसे-जैसे खुदाई आगे बढ़ रही थी यह नगर दुनिया के सामने आ रहा था.
लेकिन कुछ कारणों की वजह से सन 1965 में खुदाई को रोक दिया गया. लेकिन जिस समय खुदाई को रोका गया यह शहर पूरी तरह दुनिया के सामने आ चूका था .एक ऐसा शहर जिसकी आज से 8000 साल पहले होने की कल्पना भी नहीं की जा सकती.एक ऐसा शहर जो इस ढंग से व्यवस्थित, नगरीकृत था मानो आज के किसी प्रसिद्ध सिविल इंजीनियर ने बनाया हो.
सिंधु नदी के आस पास से मिले इस नगर के साक्ष्य के कारण मोहनजोदड़ो को सिंधु सभ्यता के मोहनजोदड़ो नगर नाम से जाना गया.
प्राचीन शहर मोहनजोदड़ो का असली नाम मोहनजोदड़ो है भी या नहीं यह कोई नहीं जानता. खुदाई से मिले साक्ष्यों के आधार पर इसे यह नाम दिया गया. मोहनजोदड़ो के लोग पढ़ना, लिखना, जोड़ना घटाना जानते थे उनकी भाषा शैली चित्रात्मक थी जिसे अब तक पढ़ा समझा नहीं जा सका है इसी आधार पर इस शहर के प्राचीन नाम को लेकर मतभेद है.
अब तक ज्ञात खुदाई से मोहनजोदड़ो का इतिहास इस प्रकार समझा जा सकता है.
अब तक हुई एक-तिहाई खुदाई से यह स्पष्ट हो गया है कि यह प्राचीन समय का एक प्रसिद्ध नगर हुआ करता था. यह लगभग 200 हेक्टेयर क्षेत्र में बसा हुआ था. यहां के लोग बहुत मेहनती थे. यह लोग पढ़ना लिखना जानते थे इनकी भाषा शैली चित्रात्मक थी जिसे विद्वानों ने ब्रुस्टोपेन्डम नाम दिया.
इन लोगों को कपास के बारे में भी जानकारी थी. मोहनजोदड़ो की खुदाई में मिले कपास के साक्ष्य से यह स्पष्ट हो गया है कि यह लोग कपास के बारे में भली-भांति जानते थे.
मोहनजोदड़ो नगर में रहने वाले लोगों ने पूरी प्लानिंग के साथ मोहनजोदड़ो नगर को बसाया था. खुदाई में मिले साक्ष्यों के आधार पर ऐसा कहा जा सकता है कि यह लोग मकान बनाने की कला में माहिर थे. मोहनजोदड़ो कि खुदाई में तीन तीन मंजिल के बने हुए मकान मिले हैं.घरों के अंदर शौचालय और पानी निकासी के लिए घरों से बाहर आती नालियां भी मिली हैं.कहा जाता है दुनिया में पहली नाली का निर्माण यहीं से हुआ था.मोहनजोदड़ो वासी काफी बड़े स्नानघर बनाया करते थे. इन घरों की लंबाई 39 फीट चौड़ाई 23 फीट और गहराई 8 फीट थी.यह लोग अपने अन्य का भंडारण करने के लिए विशाल अन्नागार बनाते थे.
पुरातात्विक खोज के अनुसार इन लोगों का मुख्य व्यवसाय खेती था.यह लोग गेहूं,चावल,कपास, जो, के बारे में भली-भांति जानते थे.
पुरातात्विक खोज के अनुसार यह लोग खेलने-कूदने के काफी शौकीन थे इन लोगों को शतरंज भी खेलना आता था.
आपको जानकर हैरानी होगी मोहनजोदड़ो में मिले कुछ नरकंकालों के दांत के निरीक्षण में पाया गया है कि यह लोग नकली दांत भी लगाया करते थे यानी कि यह लोग शल्य चिकित्सा में भी माहिर थे.
खोज में बहुत से धातु के बर्तन, कपास के कपड़े, गहने, इत्यादि भी मोहनजोदड़ो से प्राप्त हुए हैं. यहां से चित्रकारी मूर्तियां, बरतन आदि भी मिले हैं जिन्हें देश के प्रमुख संग्रहालय में रखा गया है.
मोहनजोदड़ो की खुदाई में ज्ञात हुआ है कि यह लोग कीमती पत्थरों से बने आभूषण पहनते थे तथा तांबे से बने आभूषणों का भी साज सजावट में प्रयोग करते थे.
मोहनजोदड़ो संसार की 4 प्राचीन नदी घाटी सभ्यताओं में सबसे विशाल सभ्यता थी.विद्वानों के अनुसार मोहनजोदड़ो की कुल जनसंख्या 40000 - 45000 के लगभग रही होगी.
लेकिन 1500 BC के आसपास अचानक मोहनजोदड़ो नगर का पतन हो गया.तथा यह नगर विलुप्त हो गया.
कुछ प्रसिद्ध विद्वानों के अनुसार मोहनजोदड़ो का अंत सिंधु नदी में आई भयंकर बाढ़ के कारण हुआ था. प्रसिद्ध विद्वान दयाराम साहनी, ए एन घोष के अनुसार जलवायु परिवर्तन या जलप्लावन भी मोहनजोदड़ो नगर के अंत का कारण बने.
1947 में भारत पाकिस्तान बनने के बाद मोहनजोदड़ो पाकिस्तान के सिंध प्रांत का हिस्सा बन गया. अगर आप मोहनजोदड़ो से जुड़े मकान,अन्नागार, स्नानघर, प्राचीन गलियां देखना चाहते हैं तो टूरिस्ट वीजा लगाइए और प्राचीन मोहनजोदड़ो का अनुभव कीजिए
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GyaniMaster.ComImage Source : Pinterest, GettyImages
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